Wednesday, March 4, 2009

क्रिकेट पर हमला क्यों?


सत्येंद्र रंजन
पाकिस्तान में श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर हमले पर भावुक होकर सोचने के कई बिंदु हैं। मसलन, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के १३२ साल के इतिहास में यह पहला मौका है, जब क्रिकेट खिलाड़ियों को निशाना बनाया गया। दरअसल १९७२ के म्युनिख ओलिंपिक में ११ इजराइली एथलीटों की हत्या के बाद यह पहला मौका है, जब खिलाड़ी इस तरह के घातक आतंकवादी हमले का निशाना बने। यह बात किसी विवेकशील व्यक्ति के समझ के परे है कि किसी आतंकवादी संगठन को आखिर खिलाड़ियों से क्या दुश्मनी हो सकती है? खिलाड़ी किसी देश या समुदाय की नीति बनाने के काम से नहीं जुड़े होते हैं। वे अपने हुनर से टीम में जगह बनाते हैं और उनकी प्रतिभा का सौंदर्य पूरी मानवता की साझा विरासत होता है।

बल्कि सामाजिक मनोविज्ञान के जानकारों का कहना है कि प्रतिद्वंद्विता या शत्रुता का भाव रखने वाले समाजों या देशों को खेल स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का बेहतरीन मौका उपलब्ध कराते हैं। खेल के मैदान पर होड़ से मन का गुबार निकल जाता है, जबकि इसमें कोई हिंसा या नुकसान नहीं होता। खुद एक दशक पहले तक भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मुकाबले ऐसी प्रतिस्पर्धा की मिसाल रहे हैं।

अभी हाल तक जब कई देशों की टीमें पाकिस्तान दौरे पर जाने से इनकार करती थीं, तो पाकिस्तान और असल में हर जगह बहुत से लोगों का यह तर्क होता था कि आज तक कभी खिलाड़ियों को निशाना नहीं बनाया गया है, इसलिए इन टीमों का डर निराधार है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड जैसी टीमों की ऐसी आशंकाओं के पीछे नस्लीय सोच के अवशेष भी तलाशे जाते थे। इस साल जनवरी में जब भारतीय टीम पाकिस्तान नहीं गई तो इन हलकों में माना गया कि इसके पीछे वजह हमलों के अंदेशे से ज्यादा दोनों के बीच मुंबई पर हमले के बाद पैदा हुआ तनाव है। दौरे को हरी झंडी न देने के भारत सरकार के कदम को एक राजनीतिक फैसला माना गया। यह जुमला एक बार फिर दोहराया गया कि राजनीति को खेल से अलग रखा जाना चाहिए।

मगर लाहौर में १२ आतंकवादियों ने श्रीलंका के क्रिकेटरों पर गोलीबारी कर इन सारी दलीलों को एक साथ ध्वस्त कर दिया है। सौभाग्य से श्रीलंका के प्रतिभाशाली क्रिकेटर मामूली चोट के साथ ही बच गए, लेकिन आतंकवादियों की गोलियों से क्रिकेट को पहुंचा जख्म बहुत गहरा है। इसके परिणाम संभवतः क्रमिक रूप से जाहिर होंगे। पाकिस्तान २००८ में एक भी टेस्ट मैच नहीं खेल सका। दरअसल, श्रीलंकाई टीम ने वहां जाकर खेलने का जब जोखिम उठाया तो पाकिस्तानी टीम १४ महीनों के बाद किसी टेस्ट मैच में उतरी। इस हमले के बाद पाकिस्तान का यह इंतजार अब कई वर्ष लंबा हो सकता है। यह भी लगभग तय है कि उसे २०११ के विश्व कप की मेजबानी से हाथ धोना पड़ेगा।

लेकिन यह असर सिर्फ पाकिस्तान तक ही सीमित नहीं रहने वाला है। लाख टके का सवाल यह है कि क्या ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड जैसी टीमें अब भारतीय उपमहाद्वीप में आने को तैयार होंगी? गौरतलब है कि मुंबई हमले के बाद बड़ी मुश्किल से इंग्लैंड की टीम भारत आकर खेलने को राजी हुई थी, लेकिन तब यह भ्रम कायम था कि आतंकवादी खिलाड़ियों पर हमला नहीं करते हैं। अब यह भ्रम टूट चुका है। भारत भले स्थिर समाज हो और यहां की सुरक्षा व्यवस्था अपेक्षाकृत भरोसेमंद हो, लेकिन विदेशी खिलाड़ी इसे बेखौफ होकर खेलने के लायक मानेंगे, यह सवाल लंबे समय तक बना रहेगा। दस अप्रैल से शुरू होने वाली २०-२० क्रिकेट की इंडियन प्रीमियर लीग का कार्यक्रम अब खतरे पड़ चुका है। यहां यह गौरतलब है कि विश्व क्रिकेट आज भारतीय बाजार पर निर्भर है और भारतीय उपमहाद्वीप आज क्रिकेट का मुख्य केंद्र है। अगर इस केंद्र और बाजार को झटके लगते हैं तो अतंरराष्ट्रीय खेल के रूप में क्रिकेट के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो सकता है।

पाकिस्तान को अभी हाल तक क्रिकेट का ब्राजील कहा जाता था। इसलिए कि ब्राजील में जैसे फुटबॉल के कुदरती हुनर वाले खिलाड़ी पैदा होते हैं, वैसे ही क्रिकेटर पाकिस्तान पैदा करता था। बिना किसी स्थापित सिस्टम के उफनती प्रतिभा की बदौलत उभरे उन क्रिकेटरों ने न सिर्फ अपना और अपने देश का नाम रोशन किया, बल्कि दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया। लेकिन क्रिकेट की यह नर्सरी आज खतरे में है। अगर वहां दुनिया की टीमें नहीं आएंगी, क्रिकेट की स्पर्धाएं नहीं होंगी तो आखिर किन रोल मॉडल्स को सामने रख कर नई प्रतिभाएं उभरेंगी?

पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद की गहरी मार झेल रहा है। यह वो आतंकवाद है, जिसे पैदा करने में खुद पाकिस्तान के सत्ताधारी एक दौर में अमेरिका के सहभागी बने। अमेरिका का मकसद अफगानिस्तान से सोवियत फौज को हटाना था, तो पाकिस्तान उन्हीं मुजाहिदीन के जरिए भारत को हजार जख्म देकर खून बहाते हुए कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था। अमेरिका का पहला मकसद तो पूरा हुआ, मगर अफगानिस्तान उन्ही नीतियों की वजह से जैसा नासूर बन गया, उसे वह आज भी भुगत रहा है। पाकिस्तान ने भारत का खून जरूर बहाया, लेकिन एक उदार और आधुनिक समाज के रूप में उसके उभरने की संभावना पर आज आतंकवाद का वह भस्मासुर हमले बोल रहा है। स्वात घाटी लेकर अब क्रिकेट तक की खूबसूरती को ये धर्मांध ताकतें नष्ट कर रही हैं।

जाहिर है, पाकिस्तान के आम लोगों के लिए यह जागने का वक्त है। पाकिस्तान आतंकवाद का अड्डा बना हुआ है, इस सच को अब वो सिर्फ अपनी कीमत पर ही झुठला सकते हैं। इसलिए कि दुनिया इस सच से वाकिफ है और इससे निपटने के लिए प्रभावित देश अपने ढंग से तैयारी कर रहे हैं। अगर पाकिस्तान में आज भी कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर हमला भारत ने कराया, तो पाकिस्तान के भविष्य के बारे में सोच कर उनसे सिर्फ सहानुभूति ही रखी जा सकती है।

बहरहाल, यह स्थिति भारत के नीति-निर्माताओं के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। उन्हें यह सोच कर खुश नहीं होना चाहिए कि आखिर उनकी बात सच साबित हुई। चुनौती आतंकवाद को परास्त करने की है। इसे भारत बनाम पाकिस्तान का रूप नहीं देना चाहिए। बल्कि पाकिस्तान के जिस किसी हिस्से में आतंकवाद से लड़ने की इच्छा नजर आए, उसे प्रोत्साहित करना और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का सहयोगी बनाना ही इस समय सबसे सही नीति हो सकती है।

1 comment:

Anonymous said...

आतंकवाद चाहे वोह पाकिस्तान में हो या भारत में, हमे कारण दूंडने के लिए जड़ तक जाना पढेगा| मेरी अपनी राइ यह है कि आतंक का माहोल इसलाम कि उस कट्टरपंथी विचारधारा जिसे वहाबी विचारधारा कहते हैं असली कारण है| इस कट्टरपंथी इसलाम की विचारधारा को साउदी अरेबिया से निर्यात किया जाता है| इस विचारधारा के अनुसार इसलाम ही सही मार्ग है और गैर इस्लामी मुल्कों को या उनके अनुयायिओं को जीने का कोई अधिकार नहीं!! दुर्भाग्यवश से हम राजनैतिक परिशुद्धता के कारण सच से अपना मुहं मोड़ लेते हैं! दक्षिण एशिया में सूफी इसलाम को ही लोग मानते थे मगर इन वहाबिओं ने जिसमे दर-उल-उलूम भी शामिल है, सूफी इसलाम को खदेड़ कर इस कट्टर पंथी इसलाम को अपनाया है| जब तक इस वहाभी कट्टरपंथी इसलाम की विचारधारा को शेत्र से हम नहीं निकालेंगे, इस तरह के आतंकी व्याक्यात होते रहेंगे|