Friday, September 21, 2007

क्रिकेट का नया युग

ट्वेन्टी-ट्वेन्टी वर्ल्ड कप क्रिकेट से दक्षिण अफ्रीका के बाहर होने के साथ ही क्रिकेट जगत में यह धारणा गहरी हो गई है कि यह टीम चाहे जितनी बेहतरीन हो, लेकिन यह बड़े टूर्नामेंट्स के लिए नहीं बनी है। ऐसे टूर्नामेंट्स में निर्णायक मौकों पर टीम के डगमगा जाने का इतिहास अब खासा पुराना हो चुका है। बहरहाल, दक्षिण अफ्रीका पर भारत की जीत ने क्रिकेट के इस सबसे बड़े बाज़ार में इस खेल की लोकप्रियता को एक नया आयाम दे दिया है। पिछले मार्च-अप्रैल में वेस्ट इंडीज में हुए वन डे वर्ल्ड कप के पहले ही दौर से भारत के बाहर होने के बाद क्रिकेट की लोकप्रियता को लेकर कई सवाल उठाए गए। हालांकि क्रिकेट के साथ इस देश में कॉरपोरेट जगत का इतना बड़ा दांव लगा है कि यह खेल आसानी से अपनी अहमियत खो देगा, यह तब भी नहीं माना गया था। बहरहाल, अब भारतीय टीम के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन ने क्रिकेट के बाज़ार की उम्मीदों को भी नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक ट्वेन्टी-ट्वनेटी वर्ल्ड कप को टेलीविजन पर अभूतपूर्व दर्शक मिल रहे हैं। जानकारों के मुताबिक जिन वन डे मैचों में भारत खेलता है, उनकी टीआरपी मोटे तौर पर सभी टीवी दर्शकों के बीच ९ से १० तक होती है। लेकिन २०-२० वर्ल्ड कप के मैचों को औसत टीआरपी १४ से १५ मिली है। भारत औऱ पाकिस्तान के बीच हुए मैच को तो बताया जा रहा है कि ३१ टीआरपी मिली। किसी मध्यवर्गीय कॉलोनी का आम अनुभव भी यही है कि इस वर्ल्ड कप ने नए दर्शक हासिल किए हैं। खासकर महिलाओं के बीच क्रिकेट का यह संस्करण काफी लोकप्रिय हो रहा है। तेज छक्के-चौकों और तुरंत नतीजे ने उन लोगों को अपनी तरफ खींचा है, जो क्रिकेट की बारीकियों में मजा नहीं लेते और जिन्हें क्रिकेट का जो स्वरूप जितना लंबा है, वह उतना ऊबाऊ लगता है।
क्रिकेट के शुद्धतावादी समर्थकों में २०-२० ओवरों के इस स्वरूप को लेकर मायूसी है। कहा जा रहा है कि इससे क्रिकेट का वह सौंदर्य नष्ट हो जाएगा, जो इसकी विशेषता रही है। तर्क दिया गया है कि क्या कोई साहित्य प्रेमी १००० या १२०० शब्दों में हैमलेट पढ़ना चाहेगा? या इतने ही शब्दों में महाभारत की कथा का पूरा आनंद लिया जा सकता है? अगर यह नहीं हो सकता तो टेस्ट क्रिकेट की जो शास्त्रीयता है, उसका आनंद भी क्रिकेट के छोटे होते जा रहे रूपों में नहीं लिया जा सकता।
क्रिकेट के इस रूप पर सवाल उठाने वाले सिर्फ रोमांटिक लोग नहीं हैं। ऑस्ट्रेलिया के कप्तान रिकी पोन्टिंग भी इसके खिलाफ बोलते रहे हैं और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड तो कुछ समय पहले तक क्रिकेट के इस संस्करण में हिस्सा लेने को ही तैयार नहीं था। बहरहाल, ऐसी सारी दलीलें ३०-३५ साल पहले भी दी गई थीं, जब वन डे क्रिकेट वजूद में आया। डेनिस लिली का वह मशहूर कथन आज भी याद है कि सीमित ओवरों का क्रिकेट असल में सीमित प्रतिभा के खिलाड़ियों का क्रिकेट है।
यह बात शायद सही हो। २०-२० क्रिकेट में जैसे खिलाड़ी चमके हैं, उसे देखते हुए इस बात की पुष्टि ही होती है। जब लंबे समय तक विकेट बचाने की चिंता न हो तो छक्के और चौके उड़ाना आसान हो जाता है। फिर गेंदबाजों और फील्डिंग पर कई प्रतिबंध बल्लेबाजों के सर्कस जैसे प्रदर्शन के लिए और अनुकूल माहौल बना देते हैं। कहा जाता है कि टेस्ट क्रिकेट एक उपन्यास की तरह होता है, जिसका हर सत्र एक अलग अध्याय होता है। हर अध्याय के लिए अलग रणनीति और कथा योजना होती है। क्रिकेट का आनंद दरअसल इसी में है। वन डे क्रिकेट ने इस धारणा को तोड़ा। उसमें नतीजा अहम हो गया। इसके बावजूद आज के क्रिकेटरों की पीढ़ी को लगता है कि पचास ओवरों के मैच में भी शास्त्रीयता है, जिसे २० ओवरों का मैच नष्ट कर रहा है।
इस विकासक्रम को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि गुजरते वक्त के साथ २० ओवरों के मैच की भी अपनी शास्त्रीयता विकसित होगी। इसमें गेंदबाज यह तरकीब सीखेंगे कि कैसे बल्लेबाजों को बांधा जाए और कैसे उन्हें चकमा देकर आउट किया जाए, जिससे बल्लेबाजी कर रही टीम दबाव में आ जाए। भारत औऱ दक्षिण अफ्रीका के मैच में ऐसी मिसाल देखने को मिली। दक्षिण अफ्रीकी टीम शुरुआत में ही पांच विकेट खोकर ऐसे दबाव आई कि फिर उबर नहीं सकी। सेमीफाइनल में पहुंचने के लिए जरूरी १२६ रन भी वह नहीं बना सकी।
बहरहाल, हम चाहें या नहीं, २०-२० क्रिकेट को अभी जैसी लोकप्रियता मिली है, उसे देखते हुए यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि यही क्रिकेट का भविष्य है। कॉरपोरट जगत अब अपना सबसे ज्यादा दांव इसमें ही लगा सकता है। अखबारों की खबरों के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के मैच के लिए उस दर पर विज्ञापन बुक किए गए, जिस पर वन डे वर्ल्ड कप के किसी मैच के लिए नहीं बुक हुए थे। यह आने वाले भविष्य का संकेत है।
अगले साल जब भारत में प्रीमियर क्रिकेट लीग और चैंपियन्स लीग की शुरुआत होगी तो वह क्रिकेट की युगांतर घटना हो सकती है। उसके साथ हर दो साल पर २०-२० वर्ल्ड कप क्रिकेट के इस रूप में लोगों की दिलचस्पी को जगाए रखेगा। २०१० के एशियाई खेलों में २०-२० क्रिकेट को जगह मिल जाना भी एक बड़ा संकेत है। दरअसल, क्रिकेट का यह रूप बदलते समाज और अर्थव्यवस्था से मेल खाता है औऱ इसीलिए इसकी कामयाबी तय मानी जानी चाहिए। दक्षिण अफ्रीका में हुए ताजा आयोजन से हमने क्रिकेट के एक नए युग की शुरुआत देखी है।
-स.र.

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