Thursday, June 4, 2009
बरकरार रहेगा सिर पर ताज!
सत्येंद्र रंजन
चौबीस सितंबर २००७ की रात ने क्रिकेट की बात बदल दी। कुछ उसी तरह जैसे २५ जून १९८३ की रात ने बदल दी थी। २५ जून १९८३ को भारत वन डे क्रिकेट का विश्व चैंपियन बना था। उसके बाद वन डे क्रिकेट की लोकप्रियता की ऐसी लहर आई कि क्रिकेट का वह नया रूप ही बहुत से लोगों के लिए असली क्रिकेट हो गया। २४ सितंबर २००७ कुछ ऐसी ही लहर टी-२० यानी ट्वेन्टी-ट्वेन्टी क्रिकेट के लिए लेकर आया।
और होता भी क्यों नहीं। अभी कुछ ही महीने हुए थे, जब भारत वन डे क्रिकेट के वर्ल्ड कप टूर्नामेंट से बड़े बेआबरू होकर पहले ही दौर में बाहर हुआ था। टीम की हालत डावांडोल थी। टीम की कमान नए कप्तान को सौंपी गई थी। भारतीय टीम बहुत कम उम्मीदें लेकर दक्षिण अफ्रीका पहुंची थी। सबकी जुबान पर था कि ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका या इंग्लैंड में से कोई टीम टी-२० के पहले विश्व कप की चैंपियन बनेगी, जिन्हें क्रिकेट के इस नए फ़ॉर्मेट का ज्यादा तजुर्बा है। भारत तो अभी कुछ समय पहले तक टी-२० क्रिकेट खेलने से ही इनकार करता रहा था। एक अनुभवहीन टीम, एक बड़ी चुनौती!
लेकिन धोनी के धुरंधरों ने वह कर दिखाया, जिससे क्रिकेट की दुनिया की अचंभित रह गई। और भारत के लोग फटी आंखों से कामयाबी का वह शिखर देख रहे थे, जिसके लिए वो २४ साल से लालायित थे। भारत एक बार फिर बादशाह था। क्रिकेट के उस फॉर्मेट में जो रोमांच और उत्तेजना से कहीं ज्यादा भरा हुआ था, फटाफट क्रिकेट का भी छोटा रूप, साढ़े तीन घंटों की कश्मकश के बाद फौरन नतीजा, पूरा मनोरंजन।
भारत की कामयाबी और क्रिकेट के इस नए रूप की कशिश ने ऐसा समां बांधा कि टी-२० क्रिकेट भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के कल्पनालोक का हिस्सा बन गया। क्रिकेट को एक नया बाजार मिला। क्रिकेट के कारोबारी इस नए बाजार में कूद पड़े। इंडियन प्रीमियर लीग का जन्म हुआ। और आईपीएल ने अपने पहले ही साल में जो सफलता एवं लोकप्रियता पाई, उससे किक्रेट का पूरा गतिशास्त्र (डायनेमिक्स) ही बदल गया है।
वेस्ट इंडीज के कप्तान क्रिस गेल को सुनिए। कहा है कि टेस्ट क्रिकेट खेल कर वो ऊब गए हैं, अब सिर्फ टी-२० पर अपना ध्यान लगाएंगे। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व विकेटकीपर ऐडम गिलक्रिस्ट की बातों पर गौर कीजिए। कहते हैं कि टी-२० में खिलाड़ियों को उतना ही दबाव झेलना पड़ता है, जितना टेस्ट क्रिकेट में यानी टी-२० अपनी क्वालिटी में कहीं भी टेस्ट क्रिकेट से कम नहीं है। शुद्धतावादी लोग ऐसी बातों से भड़केंगे। जो क्रिकेट को गहराई से जानते हैं या जिन्होंने ऊंचे स्तर पर क्रिकेट खेला है, वो जानते हैं कि अगर खिलाड़ी की संपूर्ण क्षमताओं का इम्तिहान कहीं होता है और टीमों की संपूर्ण क्षमता का मुकाबला कभी होता है, तो वह टेस्ट क्रिकेट ही है। टेस्ट क्रिकेट एक महाकाव्य या उपन्यास की तरह है, जिसमें पूरी जिंदगी के सभी पहलू, सारे उतार-चढ़ाव आते-जाते हैं। वन डे क्रिकेट एक कहानी की तरह आया, जो किसी एक घटना या एक अनुभव पर केंद्रित होती है। अब क्रिकेट का लघुकथा फॉर्मेट सामने है। बात संक्षेप में है, लेकिन पूरी है। आखिर लघुकथा में भी एक पूरा पैगाम तो होता ही है।
एक जमाने में वन डे क्रिकेट ने इस खेल के लिए नए सिरे से भीड़ जुटाई थी, जिससे औद्योगिक अर्थव्यवस्था की नई जीवन शैली के बीच अप्रासंगिक होते इस खेल में नई जान आई। ग्लोबलाइजेशन से फिर जीवन शैली बदली। और सैटेलाइट टीवी से कम समय में ही संपूर्ण मनोरंजन देने वाले दूसरे खेल भारतीय दर्शकों को भी उपलब्ध हो गए। इससे क्रिकेट को नई प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। अब टी-२० फॉर्मेट के साथ क्रिकेट ने उसका जवाब दिया है। इसलिए यह कहने वाले जानकार या खिलाड़ी गलत नहीं बोल रहे हैं कि टी-२० क्रिकेट का नया सहारा बना है, जिसका असर टेस्ट क्रिकेट पर भी होगा।
असर बेशक होगा। वन डे क्रिकेट ने जो कौशल खिलाड़ियों में भरा, उससे टेस्ट क्रिकेट में भी नई गति आई। आक्रमण और रक्षा की नई तकनीक सामने आई। अब निःसंदेह टी-२० के कौशल क्रिकेट के विकासक्रम में नए पहलू जोड़ेंगे। सिर्फ दो साल में टी-२० ने क्रिकेट को कैसे बदला है, इस पर खुद भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की राय पर ध्यान दीजिए- ‘बल्लेबाजों में नए ढंग के शॉट्स खेलने का रुझान बढ़ा है और वे ज्यादा आक्रामक हो गए हैं। शॉर्टफाइन लेग के ऊपर से स्कूप और तेज गेंदबाजों की गेंदों पर रिवर्स स्वीप जैसे शॉट आपने टी-२० क्रिकेट के सामने आने के पहले कभी नहीं देखे होंगे। कप्तान भी ज्यादा जोखिम उठाने लगे हैं, मसलन स्पिनर्स से गेंदबाजी की शुरुआत कराना। दरअसल, यह सब जुआ है। कुछ दूसरे बदलाव भी देखने को मिले हैं। बल्लेबाज हर तेज गेंद को हिट करने की फिराक में नहीं रहते, वे स्थिति का जायजा लेते हैं और उसके मुताबिक गेंद खेलते हैं।’
जाहिर है, क्रिकेट के मैदान पर अब नए कौशल देखने को मिलेंगे। जो कौशल टी-२० में विकसित होंगे, वो टेस्ट के मैदान तक पहुंचेंगे। इससे क्रिकेट ज्यादा आकर्षक होगा। लेकिन एक अहम सवाल यह है कि क्या क्रिकेट के कर्ता-धर्ता टी-२० की नई लोकप्रियता को भुनाने के अभियान में कुछ ज्यादा ही बेसब्र नहीं हो गए हैं? टी-२० का वर्ल्ड कप हर दो साल में होगा। इस लिहाज से अगला विश्व कप २०११ में होगा और उसी साल वन डे क्रिकेट का वर्ल्ड कप भी होगा। इस बीच वन डे क्रिकेट की चैंपियन्स ट्रॉफी हर दो साल में होगी। बीच में आईपीएल और विभिन्न देशों की घरेलू टी-२० प्रतियोगिता की विजेता टीमों की चैंपियन्स लीग। इतने टूर्नामेंट के बीच क्या वह रोमांच और अहमियत बची रहेगी, जिसके लिए विश्व कप जाने जाते हैं? खेल प्रतियोगिताओं की विशिष्टता इंतजार के पहलू से भी कायम रहती है। जब हर साल एक ऐसा टूर्नामेंट हो, जिससे नए चैंपियन सामने आएं, तो उनकी क्या वही अहमियत होगी, जो चार साल बाद हुए टूर्नामेंट के चैंपियन के साथ जुड़ी होती है?
वन डे क्रिकेट ने अगर अपना महत्त्व खोया तो उसकी एक वजह ओवरडोज भी थी। टी-२० क्रिकेट के उभार के साथ वन डे क्रिकेट के सामने वजूद का संकट खडा है। लोगों को अब वन डे मैच न तो उतने रोमांचक लगते हैं और ना वे मनोरंजन के लिए अब अपना पूरा दिन बर्बाद करना चाहते हैं। यह सही है कि टेस्ट क्रिकेट बना रहेगा, क्योंकि आखिर क्रिकेट के इतने जानकार तो हमेशा रहेंगे, जो उसके महत्त्व को समझ सकें। लेकिन वन डे क्रिकेट की ऐसी क्या खासियत है जो उसे टी-२० की मार से बचा सके? आखिर वह भी मनोरंजन के लिए फटाफट रूप में सामने आया था, और अब उससे ज्यादा फटाफट फॉर्मेट सामने है।
बहरहाल, दुनिया और मानवता के विकासक्रम के साथ बहुत सी कलाएं, शिल्प और विधाएं खोती रही हैं। अगर क्रिकेट के किसी रूप के साथ भी ऐसा हो तो वह शोक मनाने का विषय नहीं है। बल्कि क्रिकेट की यह विशेषता एक संतोष का विषय है कि वह बदलते वक्त की जरूरतों के मुताबिक ढल जाता है और अपना एक नया रूप पेश कर देता है। क्रिकेट संभवतः दुनिया के एकमात्र ऐसा खेल है, जिसके तीन फॉर्मट एक साथ प्रचलन में हैं। तीन फॉर्मेट- जिनके मूलतत्व भले एक हों, लेकिन जिनकी विधाएं, तकनीक और कौशल में भारी फर्क है।
इंग्लैंड में शुरू हुए विश्व कप से क्रिकेट के इस विकासक्रम में कुछ नए पहलू जुड़ेंगे। वहां एक नया समां बंधेगा। टीमें नए लक्ष्य और पूरी तैयारियों के साथ वहां पहुंची हैं। महेंद्र सिंह धोनी के साथियों के सामने चुनौती अपना ताज बचाने की है। वो जानते हैं कि दूसरी टीमें उस ताज पर कब्जा जमाने कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली हैं। ताज पर राज करने की यह जंग शुरू हो चुकी है, जो अगले दो हफ्तों तक दुनिया के करोड़ों लोगों को खुद से बांधे रखेगी।
ताज बचा सकेगा भारत?
सट्टेबाजों की सुनें तो भारत एक बार फिर टी-२० विश्व कप के खिताब का सबसे मजबूत दावेदार है। इंग्लैंड के सट्टा बाजार में भारत के फिर चैंपियन बनने पर भाव १ पर ३.५ है। दक्षिण अफ्रीका पर भाव पांच और ऑस्ट्रेलिया पर भाव साढ़े पांच का है।
और क्रिकेट के ज्यादातर जानकारों की राय भी इससे अलग नहीं है। आम अनुमान यही है कि इन्हीं तीन टॉप टीमों से कोई एक विश्व विजेता का सेहरा पहनेगा। पाकिस्तान, श्रीलंका और न्यूजीलैंड की टीमों की बारी इसके बाद है।
हालांकि एक यह राय भी है कि टी-२० क्रिकेट में किसी टीम की संभावना को बढ़ा कर या कम करके आंकना एक भूल है। उदारहण आईपीएल का है। जो दो टीमें २००८ में सबसे नीचे थीं, २००९ में वो सबसे ऊपर रहीं। पिछले साल सबसे नीचे रही डेक्कन चार्जर्स इस बार चैंपियन बनी, और पिछले साल सातवें नंबर पर रही बैंगलोर रॉयल चैलेंजर्स रनर्स अप। तो क्या यह मुमकिन नहीं है कि इस बार विश्व कप का फाइनल न्यूजीलैंड और श्रीलंका के बीच हो?
क्रिकेट में सब कुछ मुमकिन है, मगर भारत का दावा मजबूत मानने के पीछे कई ठोस तर्क हैं। कप्तान धोनी ने कहा है कि भारत के पास ऐसे खिलाड़ी हैं, जो टी-२० फॉर्मेट के हिसाब से बिल्कुल फिट हैं। टीम में विशेषज्ञ गेंदबाज हैं, और ऐसे पार्टटाइम बॉलर हैं, जिन्होंने आईपीएल-२ में बेहतरीन फॉर्म दिखाया। खासकर पार्टटाइम स्पिनर्स के उपलब्ध होने से टीम के पास यह मौका है कि वह चाहे तो एक अतिरिक्त तेज गेंदबाज खेला सकती है।
आईपीएल में जितने भारतीय खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया, उतने किसी और देश के नहीं। यानी भारतीय खिलाड़ियों के पास टी-२० का फिलहाल सबसे ज्यादा अनुभव है, और वे आईपीएल टूर्नामेंट से सीधे विश्व कप में पहुंचे हैं, यानी वो टी-२० के मोड में भी हैं।
हालांकि धोनी यह नहीं मानते कि भारत को आसान ग्रुप मिला है, क्योंकि उनकी राय में टी-२० में ना तो बांग्लादेश को हलके से लिया जा सकता है, और ना आयरलैंड को। आखिर इन दो टीमों ने ही २००७ के वन डे वर्ल्ड कप से भारत और पाकिस्तान को बाहर किया था। इसके बावजूद अगर दूसरे ग्रुप्स को देखें तो शुरुआती दौर में भारत का काम आसान लगता है।
बहरहाल, भारत की कुछ चिंताएं भी हैं। और इनमें सबसे बड़ी चिंता ओपनिंग बल्लेबाजों का फॉर्म में नहीं होना है। आईपीएल में गौतम गंभीर ने बेहद कमजोर प्रदर्शन किया और वीरेंद्र सहवाग भी दो पारियों को छोड़ कर कोई बेहतर हाथ नहीं दिखा सके। फिर जहीर खान पूरी तरह फिट नहीं हैं। वो कंधे की चोट के साथ इंग्लैंड पहुंचे हैं। इंग्लैंड के माहौल में जहां गेंद तेजी से स्विंग करती है, जहीर खान भारत के लिए तुरुप का पत्ता हो सकते हैं, बशर्ते वो फिटनेस की समस्या से उबर सकें। इसके अलावा एक और पहलू, जिसे भारत की मजबूती माना जा रहा है, वह उसके लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। आईपीएल-२ ने खिलाड़ियों को तजुर्बा जरूर दिया है, लेकिन थकाया भी है। अगर थकान का असर फॉर्म पर पड़ा तो सौदा महंगा पड़ सकता है।
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